जोरहाट – कविता: मनोज शर्मा
मिट्टी है चारों ओर जन–जन के हाथ में मिट्टी है यहाँ मिट्टी का ही मौसम है… दूर तक फैला है
Read moreमिट्टी है चारों ओर जन–जन के हाथ में मिट्टी है यहाँ मिट्टी का ही मौसम है… दूर तक फैला है
Read moreजितना जिया सही शर्तों पर यही सुखद है… उम्मीदों पर लगाईं मोहरें उमंगों को दिए नए चेहरे रहा बहुत सा
Read moreयह रात अंधियारी है जड़ों तक फैली हैं बड़ की शाखाएं और एक प्रेत उलटा लटका राहगीरों से पूछ रहा
Read moreहवा में नमी नहीं है फिर भी खिल गए हैं सभी फूल धधकते सूरज के इस कालखंड में एक चित्रकार
Read moreजि़ंदगी नहीं ख़्वाब नहींफितरत है तू मेरी अक़ीदत नहीं हक़ीकत नहींआदत है तू मेरी रहबर मेरे जब था मेरे नालसमझ
Read moreकई बार अनुरोध किया था तुमनेदे दूं, तुम्हें अपनी कोई तस्वीरताकि जब मैं साथ नहीं तुम्हारे,बातें कर सको, मेरी तस्वीर
Read moreबाबा फरीद ने क्या खूब कहा है – वेख फरीदा मिट्टी खुल्ली,मिट्टी उत्ते मिट्टी डुली,मिट्टी हांसे, मिट्टी रोवे,अंत मिट्टी दा,
Read moreकहा तुमने करते हो बेपनाह मोहब्बत मुझसेमैंने मान लिया, करते हो बेपनाह मोहब्बत मुझसेजानते थे कि दुनिया का सबसे बड़ा
Read moreघरकविता: हूबनाथ पांडे, विख्यात कविस्वर: अलका अग्रवाल, लेखिका-कवयित्री
Read moreमहामारीकविता: हूबनाथ पांडे, विख्यात कविस्वर: अलका अग्रवाल, लेखिका-कवयित्री
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