प्रेत – कविता: मनोज शर्मा
यह रात अंधियारी है जड़ों तक फैली हैं बड़ की शाखाएं और एक प्रेत उलटा लटका राहगीरों से पूछ रहा
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Read moreहवा में नमी नहीं है फिर भी खिल गए हैं सभी फूल धधकते सूरज के इस कालखंड में एक चित्रकार
Read moreकोरोना में कई लोगों का रोना बाहर आ गया। लाख रूपैया की मुट्ठी खुल गई। नहीं सोचा था वो हो
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