कोरोनाकाल का नया शास्त्र–सार – व्यंग्य: डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा

उस रात मैं टीवी सीरियल महाभारत में कृष्ण -अर्जुन संवाद का एपीसोड देख सोया था। अचानक एक दिव्य वाणी सुनी, उठो वत्स! ये समय तुम्हारे सोने का नहीं है! देखो, कितने कोरोना रोगी, कितने वारियर्स और कितने परिजन जाग रहे हैं। कितने आइसोलेशन में और कितने क्वारंटीन में हैं जिन्हें दहशत के कारण नींद नहीं आ रही है। कितने मजदूरों को दिन -रात, भूखे- प्यासे नंगे पांव चलने के कारण नींद न आने की बीमारी हो गई है! और इधर एक तुम हो! यूं सो रहे हो मानों वैक्सीन लगवा कर कोरोना से अभयदान पा लिया हो! उठो जागो! कोरोना का सुन मै सकपका कर उठा तो देखा सामने टीवी वाले भगवान मुस्करा रहे हैं! मैने प्रणाम किया तो बोले, आज मैं तुम्हें नया शास्त्र -सार सुना रहा हूं वत्स, सुनो…

शास्त्रों ने कहा था कि जीवन क्षणभंगुर है, जगत नश्वर है, पर तुमने एक न सुनी! ज्ञान -विज्ञान का बेसुरा गीत गाते रहे। और अब न्यूज चैनलों पर कोरोना स्कोर-बोर्ड देख जब तुम्हें साक्षात! अपनी ही अंतिम -यात्रा दिखाई पड़ती है! तब तुम्हें शास्त्रों का यह सत्य समझ आता है और तुम दहशत में आ जाते हो। इतनी दहशत! कि जब घर की कालबेल बजती है तो तुम्हें लगता है कहीं ये साक्षात् काल की बेल तो नहीं! और तुम्हारी दशहत वायरस की मानिंद बढ़ जाती है।

कहा था, ईश्वर की भक्ति करो। पर तुम जीवन भर फिल्म ‘दीवार’ के हीरो अमिताभ बच्चन बने रहे और मंदिर में दर्शन तो दूर कभी सीढ़ियां नहीं चढ़े! कहते थे, कौन भगवान! कैसा भगवान! सब बकवास है! आज कोरोनाकाल में ‘कोरोना’ जब ‘काल’ बन कर दहाड़ रहा है, तो तुम्हें कण-कण में भगवान दिखने लगे हैं और तुम पल -पल उसे याद कर रहे हो। जब मंदिर-गुरूद्वारे खुले हुए थे, तब तुम कभी गए नहीं ! और जब लाकडाउन में बंद हुए तो तुम उन्हें खुलवाने पर आमदा हो गए! वाह मनुष्य वाह! तुम्हारा जवाब नहीं! काश! तुमने भक्त कबीर की बात मानी होती और सुख में भी भगवान का सुमिरन किया होता! तो तुम्हारा और तुम्हारी आत्मा का इम्यूनिटी सिस्टम इतना कम न होता! वायरस का एकमात्र उपचार है वत्स, भक्ति रस! काश तुम समय पर जाग गए होते!

कहा था, माया -मोह से दूर रहो। पर तुम जीवन भर जर-जोरू -जमीन के जाल-जंजाल में उलझे रहे! भौतिकता की अंधी सुरंग में मैराथन दौड लगाते रहे। गाते थे, हर पल यहां जी-भर जीओ! कल हो न हो! और अब कोरोना में जब माया की छाया भी आइसोलेशन में चली गई तब तुम्हारा मोह भंग होना शुरू हुआ! कहा था ‘जल’ में ‘कमल’ की भांति जीवन जिओ। पर तुम्हें हमेशा तर-बतर रहने की आदत थी। और अब तालाब का पानी जब सूखता दिख रहा है, तब तुम बाहर निकलने के लिए आकुल -व्याकुल हो रहे हो!

कहा था, सदा सहज और स्वस्थ रहो। पर तुम जीवन भर कृत्रिम और जटिल बने रहे। चेहरे पर चेहरा लगाए घूमते रहे! कहते थे कि विश्व एक रंगमंच है! जीवन एक नाटक है ! और हम उसके पात्र! वह तुम्हारा अहम था वत्स! और अब असली चेहरा जब सामने आया तो चेहरे पर वास्तविक मास्क लगाने को विवश होना पड़ा है! काश! तुमने नकली मास्क न लगाए होते! रीअल लाईफ जी होती ! रील लाईफ न जी होती ! तो आज तुम्हें अपना असली चेहरा छिपाने के लिए मास्क न लगाना पड़ता!

कहा था, राग-द्वेष से दूर रहो! पर तुम न माने! जिनसे राग रखना था, उनसे द्वेष रखते रहे और जिनसे द्वेष रखना था, उनसे राग रखते रहे! कहते थे कि दिल है कि मानता नहीं! अब सोशल डिस्टेंसिंग में जब न राग काम का रहा न द्वेष! तब तुम पछता रहे हो! शुक्र मनाओ वत्स! अभी चिड़िया ने पूरा खेत चुगा नहीं है! फसल अभी बाकी है! इसलिए उठो और जागो!

अचानक अलार्म बजा और मैं जाग गया! पर वास्तव में जागा या नहीं मुझे नहीं पता!

डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा

आभार, आजादनगर उज्जैन

Photo Courtesy: Jackson Simmer on Unsplash

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Zindaginama Live 14 June 2020

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Posted by Anootha India on Sunday, 14 June 2020

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