अम्मा : कविता – संध्या रियाज़

अम्मा के जाने के बाद
उनकी पेटी से एक थैला मिला है
जिसमे मेरे बचपन का रेला मिला है

एक चरखी एक लट्टू एक गुडिया मैली सी
एक नाव आड़ी टेडी लहरों में फैली सी
एक किताब जिसमे पहली बार मैंने अम्मा लिखा था
लाल रुमाल में बाँधके अम्मा ने अबतक रखा था
हाँ तीन पेन्सिल उसमें मेरी टूटी हुई भी रखीं थी
डोर जिसमे अम्मा की साड़ी की बंधी थी

कुछ यादें जो बिना हाथ लगाये हाथ आती गयीं
अम्मा की दस अँगुलियों की गिनती का गिनना
चुपके से अम्मा का एक सिक्का ले लेना
अम्मा का तमाचा गाल पे पड़ते पड़ते रुक जाना
लाड से उनका दुनियां भर की बातों का बतलाना
उनका मुझे खिलाना नहलाना सुलाना जगाना
सब याद आने लगा

लगा की काश कुछ हो जाए
जाने कहाँ चली गयीं हैं मेरी अम्मा
ढूंढ के वापिस ले आयें

उम्र से बचपन गया और बचपना भी
लेकिन अम्मा का नाम आते ही
रोने को जी करता है
और तब उस दिन मिला हुआ ये थैला
मुझे मेरी अम्मा सा सुख देता है

अकेले होते ही इसे छू लेती हूँ
मैं उनकी जागीर थी और अम्मा मेरा खजाना
जिनका मुझ पर और मेरा उन पर ताजिंदगी हक होगा
ये थैला मेरी अम्मा ने मुझको दिया था
सिर्फ मेरा ही होगा…

संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

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