माँ! माँ होती है : कविता – संध्या रियाज़

माँ का कोई सरनेम नहीं होता
न माँ का कोई धर्म होता है
माँ तो हमेशा माँ ही होती है
हर जाति धर्म में वो माँ होती है

किसी भी भाषा को बोले तब भी
कोई भी पोशाक को पहने तब भी
बुर्के वाली माँ भी माँ होती है
साड़ी वाली माँ भी माँ होती है

कोई ताकत उसे नहीं बदल पाती
हर परिवार में वो माँ का किरदार होती है
हर बंटवारों और हर तमगों के परे
माँ माँ होती है वो कभी नहीं बदलती

लेकिन माँ की संतानें किरदार बदल चुकी हैं
वो टोपियों से, तिलक और गमझों से
झंडों के रंगों से अनेक सरनेमों से
अब जानी और पहचानी जाती है

धर्म के नाम चंद सिक्को में बिक जाती है
बेमौत एकदूजे के हाथों मरवा दी जाती हैं
काश सीखा होता माँ से न बदलना उन्होंने भी
बेवक़्त लाश बन माँ की गोद से छिन जाती हैं

माँ तब भी सबकी एक जैसी माँ होती है
खून के आंसू पीके बेटे की लाश ढूंढती है
आँचल में छिपा वो अपनी गोद में सुलाती है
माँ माँ का किरदार तब भी निभाती है

वो तब भी सिर्फ एक माँ ही होती है
अपने बेटों पर न्यौछाबर होती एक माँ
जो जीते जी जवान बेटों को खोकर
खुद ज़िंदा होते हुए भी लाश बन जाती है
चलती फिरती ये लाश भी माँ कहलाती है

हर जाति, हर धर्म हर समाज में इक होती है
माँ! माँ सिर्फ होती है।

संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

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