सुनो मन : कविता – संध्या रियाज़
सुनो मन क्या तुम्हें उदास होने की बीमारी है
क्यूँ बेवझा उदास हो हो कर
घर की चार दीवारी से लड़ जाते हो
कभी सब कुछ होते हुए भी
अपने आप को बेसहारा पाते हो।
मन ! तुम न जाने कहाँ कहाँ
बिन बताये चले जाते हो
पता है आज जीना कितना मुश्किल है
रोटी भी नाप तौल के खायी जाती है
जीवन जितना सादा हो
सोना उतना आसान होता है
लेकिन तुम तो नींद से पहले ही
मेरे सपनों का हाथ थाम
न जाने कहाँ गुम्म हो जाते हो
किस तरह समझाएं किस तरह सिखाएं
अपनी हद्द और औक़ात में रहना सीखो
तुम होगे शहंशाह कहीं के
पर मैं तो आम हूँ जिसके हाथ बंधे हैं
जिसे बनी बनायीं लकीरों पर ही चलना है
लकीर से बाहर होते ही खेल ख़त्म होता है
तुम मेरे अन्दर रहकर भी
क्यूँ हरदम जुदा होकर जीना चाहते हो
सुनो मन मान जाओ
मान जाओ की तुम अकेले कुछ नहीं
और मैं भी तुम बिन कुछ नहीं
लेकिन सच तो सच होता है
हर कोई अपने घेरे में जीता मरता है
तुम अब छलांगे मारना बंद करो
और मेरी तरह अपनी हद्द में रहो
रोज़ अच्छा खाना
सपनों जैसा साफ़ सुथरा घर
एक अच्छा काम
साथ में समाज में अपना नाम
अपने अज़ीज़ और सच्चे रिश्ते
खुशियों भरा हंसता खिलखिलाता जहान
ये सब पाना क्या इतना आसान होता है
बड़े अजीव से है तुम्हारे सपने
भई ये सब सबके हिस्से में कब आता है
अब तो समझ जाओ
सुनो मन …जीवन जीना है हमें
मौत से पहले मरना नहीं है
शांत रहो जैसा जो है वो अपना है
इससे ज्यादा मिलेगा पता नहीं
सो स्वीकारो और उदास मत हो
मेरे संग जागो और मेरे संग सो जाओ
मेरे कहे बिना कहीं न जाया करो
सुनो मन अब मेरे संग जीना मरना सीख लो
क्यूँ की यही नियति है
जो मेरी और तुम्हारी अपनी है
संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/